Tuesday, December 18, 2012

शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के दस प्रमुख अवतार ।


शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के दस प्रमुख अवतार ।

यह दस अवतार इस प्रकार है जो मानव को सभी इच्छित फल प्रदान करने वाले हैं-

1. महाकाल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में पहला अवतार महाकाल नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का महाकाल स्वरुप अपने भक्तों को भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला परम कल्याणी हैं। इस अवतार की शक्ति मां महाकाली मानी जाती हैं।

2. तार- शिव के दस प्रमुख अवतारों में दूसरा अवतार तार नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का तार स्वरुप अपने भक्तों को भुक्ति

-मुक्ति दोनों फल प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति तारादेवी मानी जाती हैं।

3. बाल भुवनेश- शिव के दस प्रमुख अवतारों में तीसरा अवतार बाल भुवनेश नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का बाल भुवनेश स्वरुप अपने भक्तों को सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को बाला भुवनेशी माना जाता हैं।

4.षोडश श्रीविद्येश- शिव के दस प्रमुख अवतारों में चौथा अवतार षोडश श्रीविद्येश नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का षोडश श्रीविद्येश स्वरुप अपने भक्तों को सुख, भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी षोडशी श्रीविद्या माना जाता हैं।

5. भैरव- शिव के दस प्रमुख अवतारों में पांचवा अवतार भैरव नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का भैरव स्वरुप अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति भैरवी गिरिजा मानी जाती हैं।

6. छिन्नमस्तक- शिव के दस प्रमुख अवतारों में छठा अवतार छिन्नमस्तक नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का छिन्नमस्तक स्वरुप अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति देवी छिन्नमस्ता मानी जाती हैं।

7. धूमवान- शिव के दस प्रमुख अवतारों में सातवां अवतार धूमवान नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का धूमवान स्वरुप अपने भक्तों की सभी प्रकार से श्रेष्ठ फल देने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी धूमावती माना जाता हैं।

8. बगलामुख- शिव के दस प्रमुख अवतारों में आठवां अवतार बगलामुख नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का बगलामुख स्वरुप अपने भक्तों को परम आनंद प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी बगलामुखी माना जाता हैं।

9. मातंग- शिव के दस प्रमुख अवतारों में नौवां अवतार मातंग के नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का मातंग स्वरुप अपने भक्तों की समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी मातंगी माना जाता हैं।

10. कमल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में दसवां अवतार कमल नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का कमल स्वरुप अपने भक्तों को भुक्ति और मुक्ति प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी कमला माना जाता हैं।
विद्वानो के मत से उक्त शिव के सभी प्रमुख अवतार व्यक्ति को सुख, समृद्धि, भोग, मोक्ष प्रदान करने वाले एवं व्यक्ति की रक्षा करने वाले हैं।


Sunday, December 9, 2012

विद्येश्वर संहिता अध्याय ३,४


साध्य-साधन आदि का विचार तथा श्रवण ,कीर्तन और मनन –इन तीन साधनों की श्रेष्ठता का प्रतिपादन




व्यास जी कहते हैं --- सूत जी यह वचन सुनकर वे सब महर्षि बोले –अब आप हमें वेदान्तसार-सर्वस्वरूप अद्भुत-शिव पुराण की कथा सुनाइए |

सूत जी ने कहा - आप सब महर्षिगण रोग-शोक से रहित कल्याणमय भगवान् शिव का स्मरण करके पुराणप्रवर शिवपुराण की,जो वेदके सार तत्त्व से प्रकट हुआ है ,कथा सुनिए | शिव पुराण में भक्ति,ज्ञान और वैराग्य –इन तीनों का प्रीती पूर्वक गान किया गया है और वेदान्तवेद्य सध्द्स्तु का विशेष रूप से वर्णन है | इस वर्तमान कल्प में जब सृष्टिकर्म आरम्भ हुआ था ,उन दिनों छः कुलों के महर्षि परस्पर वाद-विवाद करते हुए कहने लगे –अमुक वस्तु सबसे उत्कृष्ट है और अमुक नहीं है | उनके इस विवाद ने अत्यंत महान रूप धारण कर लिया | तब वे सब-के-सब अपनी शंका के समाधान के लिए सृष्टिकर्ता अविनाशी ब्रह्मा जी के पास गए और हाथ जोड़कर विनयभरी वाणी में बोले –प्रभो ! आप सम्पूर्ण जगत को धारण-पोषण करने वाले तथा समस्त कारणों के भी कारण हैं | हम यह जानना चाहते हैं की सम्पूर्ण तत्वों से परे परात्पर पुराणपुरुष कौन है ??

ब्रह्माजी ने कहा – जहाँ से मन सहित वाणी उन्हें न पाकर लौट आती है तथा जिनसे ब्रह्मा,विष्णु ,रूद्र और इंद्र आदि से युक्त यह सम्पूर्ण जगत समस्त भूतों और इन्द्रियों के साथ पहले प्रकट हुआ है ,वे ही ये देव ,महादेव सर्वज्ञ एवं सम्पूर्ण जगत के स्वामी हैं | ये ही सबसे उत्कृष्ट हैं | भक्ति से ही इनका साक्षात्कार होता है | दूसरे किसी उपाय से कहीं इनका दर्शन नहीं होता | रूद्र,हरि,हर तथा अन्य देवेश्वर सदा उत्तम भक्ति भाव से उनका दर्शन करना चाहते हैं | भगवान् शिव में भक्ति होने से मनुष्य संसार बंधन से मुक्त हो जाता है | देवता के कृपाप्रसाद से से उनमे भक्ति होती है और भक्ति से देवता का कृपाप्रसाद प्राप्त होता है ---ठीक उसी तरह जैसे अंकुर से बीज और बीज से अंकुर पैदा होता है | इसलिए तुम सब ब्रह्मर्षि भगवान् शंकर का कृपा प्रसाद प्राप्त करने के लिए भूतल पर जाकर वहां सहस्त्रों वर्षों तक चालु रहने वाले एक विशाल यज्ञ का आयोजन करो | इन यज्ञपति भगवान् शिव की कृपा से वेदोक्त विद्या के सारभूत साध्य-साधन का ज्ञान होता है |
                      शिवपद की प्राप्ति ही साध्य है | उनकी सेवा है साधन है तथा उनके प्रसाद से जो जो नित्य-नैमित्तिक आदि फलों की और से नि:स्पृह होता है ,वही साधक है | वेदोक्त कर्म का अनुष्ठान करके उनके महान फल को भगवान शिव के चरणों में समर्पित कर देना ही परमेस्वरपद की प्राप्ति है | वही सालोक्य आदि के क्रम से प्राप्त होने वाली मुक्ति है | उन-उन पुरुषों की भक्ति के अनुसार उन सबको उत्कृष्ट फल की प्राप्ति होती है |उस भक्ति के साधन अनेक प्रकार के हैं , जिनका साक्षात महेश्वर ने ही प्रतिपादन किया है | उनमें से सारभूत साधन को संक्षिप्त करके मैं बता रहा हूँ | कान से भगवान् के नाम-गुण और लीलाओं का श्रवण , वाणी द्वारा उनका कीर्तन तथा मन के द्वारा उनका मनन –इन तीनों को महान साधन कहा गया है |

तात्पर्य यह है की महेश्वर श्रवण , कीर्तन और मनन करना चाहिए – यह श्रुति का वाक्य हम सबके लिए प्रमाणभूत है | इसी साधन से सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि में लगे हुए आपलोग परम साध्य को प्राप्त हों | लोग प्रत्यक्ष वस्तु को आँख से देखकर उनमे प्रवित्त होते हैं | परन्तु जिस वस्तु का कहीं भी प्रत्यक्ष दर्शन नहीं होता उसे श्रवणनेंद्रिय द्वारा जान-सुनकर मनुष्य उसकी प्राप्ति के लिए चेष्टा करता है | अतः पहला साधन श्रवण ही है ,उसके द्वारा गुरु के मुख से तत्त्व को सुन कर श्रेष्ठ बुद्धि वाला विद्वान पुरुष अन्य साधन-कीर्तन एवं मनन की सिद्धि करे | क्रमशः मनन पर्यंत इस साधन की अच्छी तरह साधना कर लेने पर उसके द्वारा सालोक्य आदि के क्रम से धीरे धीरे भगवान् शिव् का संयोग प्राप्त होता है | पहले सारे अंगों के रोग नष्ट हो जाते हैं | फिर सब प्रकार का लौकिक आनंद भी विलीन हो जाता है |
                          भगवान् शंकर की पूजा , उनके नामों के जप तथा उनके गुण ,रूप विलास और नामों का युक्ति परायण चित्त के द्वारा जो निरंतर प्रतिशोधन या चिंतन होता है , उसको मनन कहा गया है ; वह महेश्वर की कृपा दृष्टि से उपलब्ध होता है

                      सूत जी कहते हैं - मुनीश्वरों ! इस साधन का महात्म्य बताने के प्रसंग में मैं आपलोगों के लिए एक प्राचीन वृत्तान्त का वर्णन करूंगा,उसे ध्यान देकर आप सुनें | पहले की बात है , पराशर मुनि के पुत्र मेरे गुरु व्यास देव जी सरस्वती नदी के सुन्दर तट पर तपस्या कर रहे थे | एक दिन सूर्यतुल्य तेजस्वी विमान से यात्रा करते हुए भगवान् सनत्कुमार अकस्मात वहां जा पहुंचे | उन्होंने मेरे गुरु को वहां देखा | वे ध्यान में मग्न थे | उससे जगने पर उन्होंने ब्रह्मपुत्र सनत्कुमार जी को अपने सामने उपस्थित देखा | देखकर वे बड़े वेग से उठे और उनके चरणों में प्रणाम करके मुनि ने उन्हें अर्घ्य दिया और देवताओं के बैठने योग्य आसन भी अर्पित किया तब प्रसन्न हुए भगवान् सनत्कुमार विनीतभाव से खड़े हुए व्यास जी से गंभीर वाणी में बोले ---
                     ‘मुने ! तुम सत्य वस्तु का चिंतन करो वह सत्य पदार्थ भगवान् शिव ही हैं ,जो तुम्हारे साक्षात्कार के विषय होंगे | भगवान् शंकर का श्रवण ,कीर्तन ,मनन --- ये तीन महत्तर साधन कहे गए हैं | ये तीनों ही वेदसम्मत हैं | पूर्वकाल में दूसरे दूसरे साधनों के संभ्रम में पड़कर घूमता-घामता चंद्राचल पर जा पहुंचा और वहां तपस्या करने लगा | तदनंतर महेश्वर शिव की आज्ञा से भगवान नंदिकेश्वर वहां आये | उनकी मुझपर बड़ी दया थी | वे सबके साक्षी तथा शिव गणों के स्वामी भगवान् नंदिकेश्वर मुझे स्नेहपूर्वक मुक्ति का उत्तम साधन बताते हुए बोले भगवान् शंकर का श्रवण कीर्तन और मनन ये तीनों साधन वेद सम्मत हैं और मुक्ति के साक्षात् कारण हैं ; यह बात स्वयं भगवान् शिव ने मुझसे कही है अतः ब्रह्मण ! तुम श्रवण आदि तीनों साधनों का अनुष्ठान करो !’ व्यास जी से बारम्बार ऐसा कह कर अनुगामियों सहित ब्रह्मपुत्र सनत्कुमार परम सुन्दर ब्रम्ह्धाम को चले गए | इस प्रकार पूर्वकाल के इस उत्तम वृत्तान्त का मैंने संक्षेप से वर्णन किया है |
                     ऋषि बोले-  सूत जी ! श्रवण आदि तीन साधनों को आपने मुक्ति का उपाय बताया है | किन्तु जो श्रवण आदि तीनों साधनों में असमर्थ हो , वह मनुष्य किस उपाय का अवलंबन करके मुक्त हो सकता है | किस साधनभूत कर्म के द्वारा बिना यत्न के ही मोक्ष मिल सकता है ???
(शेष अगली पोस्ट में )
(अध्याय ३-४ )     

Saturday, December 8, 2012

विद्येश्वर संहिता (अध्याय २)



शिवपुराण का परिचय

 

                                                सूत जी कहते हैं  साधू महात्माओं ! आपने बहुत अच्छी बात पूछी है आपका ये प्रश्न तीनों लोकों का हित करने वाला है | मैं गुरुदेव व्यास का स्मरण कर के आप लोगों के स्नेहवश इस विषय का वर्णन करूंगा | आप आदर पूर्वक सुनें | सबसे उत्तम जो शिवपुराण है वह वेदांत का सारसर्वस्व है तथा वक्ता और श्रोता का समस्त पाप राशियों से उद्धार करने वाला है ,इतना ही नहीं, वह परलोक में परमार्थ वस्तुको देने वाला है ,कलिकी कल्मष राशि का विनाश करने वाला है | उसमे भगवान् शिव के उत्तम यश का वर्णन है | ब्राह्मणों ! धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष- इन चारों पुरुषार्थों को देने वाला वह पुराण सदा ही अपने प्रभाव की दृष्टि से वृद्धि या विस्तार को प्राप्त हो रहा है | विप्रवरों उस सर्वोत्तम शिवपुराण के अध्ययन मात्र से वे कलियुग के पापसक्त जीव श्रेष्ठतम गति को प्राप्त हो जायेंगे | कलियुग के महान उत्पात तभी तक जगत में निर्भय होकर विचरेंगे,जबतक यहाँ शिवपुराण का उदय नहीं होगा | इसे वेद के तुल्य माना गया है |
                                                   इस वेद्कल्प पुराण का सबसे पहले भगवान् शिव ने ही प्रणयन किया था | विद्येश्वरसंहिता, रूद्रसंहिता, विनायकसंहिता, उमासंहिता, मातृसंहिता, एकादशरूद्रसंहिता, कैलाशसंहिता, शतरूद्रसंहिता, कोटिरूद्रसंहिता, सहस्तकोटिरूद्रसंहिता, वायवीयसंहिता तथा धर्मसंहिता---- इस प्रकार इस पुराण के बारह भेद या खंड हैं| ये बारह संहिताएँ अत्यंत पूर्णमयी मानी गयी हैं | ब्राह्मणों ! अब मैं उनके श्लोकों की संख्या बतारहा हूँ | आप लोग वह सब आदर पूर्वक सुनें विद्येश्वरसंहिता में दस हज़ार श्लोक हैं रूद्रसंहिता, विनायकसंहिता, उमासंहिता, मातृसंहिता-इनमे से प्रत्येक के आठ-आठ हज़ार श्लोक हैं |
                                                  ब्राह्मणों ! एकादश रूद्रसंहिता में तेरह हज़ार,कैलाशसंहिता में छह हजार ,शतरूद्रसंहिता में तीन हजार ,कोटि रूद्र संहिता में नौ हजार , सहस्त्रकोटिरूद्र संहिता में ग्यारह हजार,वायवीय संहिता में चार हजार ,तथा धर्म संहिता में बारह हजार श्लोक हैं | इस प्रकार मूल शिवपुराण की श्लोक संख्या एक लाख है ,परन्तु व्यास जी ने उसे चौबीस हजार श्लोकों में संक्षिप्त कर दिया है | पुरानों की क्रम संख्या के विचार से इस शिवपुराण का स्थान चौथा है | इसमें सात संहिताएँ हैं
                                                  पूर्वकाल में भगवन शिव ने श्लोक संख्या की दृष्टि से सौकरोड़ श्लोकों का एक ही पुराण ग्रन्थ ग्रथित किया था | सृष्टि के आदि में निर्मित हुआ वह पुराण साहित्य अत्यंत विस्तृत था | फिर द्वापर आदि युगों में द्वैपायन (व्यास) आदि महर्षियों ने जब पुराण का अठारह भागों में विभाजन कर दिया ,उस समय सम्पूर्ण पुराणों का संक्षिप्त स्वरुप केवल चार लाख श्लोकों का रह गया | उस समय उन्होंने शिवपुराण का चौबीस हजार श्लोकों में प्रतिपादन किया | यही इसके श्लोकों की संख्या है |
                                                  यह वेदतुल्य पुराण सात संहिताओं में बंटा हुआ है | इसकी पहली संहिता का नाम विद्येश्वर संहिता है , दूसरी रूद्रसंहिता समझनी चाहिए, तीसरी का नाम  शतरूद्रसंहिता,चौथी का कोटिरूद्र संहिता ,पांचवी का उमासंहिता ,छठी का कैलाशसंहिता,और सातवीं का नाम वायवीय संहिता है | इस प्रकार ये सात संहिताएँ मानी गयी हैं | इन सात संहिताओं से युक्त दिव्य शिवपुराण वेदके तुल्य प्रमाणिक तथा सबसे उत्कृष्ट गति प्रदान करनेवाला है | यह निर्मल शिवपुराण भगवान् शिव के द्वारा ही प्रतिपादित है | इस शैवशिरोमणि भगवान् व्यास ने संक्षेप से संकलित किया है | यह समस्त जीव-समुदाय के लिए उपकारक त्रिविध तापों का नाश करने वाला ,तुलना रहित एवं सत्पुरुषों को कल्याण प्रदान करने वाला है | इसमें वेदांत-विज्ञानमय प्रधान तथा निष्कपट (निष्काम) धर्म का प्रतिपादन किया गया है | यह पुराण इर्ष्यारहित अन्तःकरण वाले विद्वानों के लिए जानने की वस्तु है इसमें श्रेष्ठ मन्त्र समूहों का संकलन है तथा धर्म अर्थ और काम इस त्रिवर्ग की प्राप्ति के साधन का भी वर्णन है | यह उत्तम शिवपुराण समस्त पुराणों में श्रेष्ठ है| वेद-वेदान्त में वेद्यरूप से विलसित परम वस्तु----परमात्मा का इसमें गान किया गया है जो बड़े आदर से इसे पढता है और सुनता है वह भगवान् शिव का प्रिय होकर परम गति को प्राप्त कर लेता है |
(शेष अगले भाग में ....)
(अध्याय २)  

विद्येश्वरसंहिता-अध्याय १







प्रयाग में सूतजी से मुनियों का तुरंत पापनाश करनेवाले साधन के विषय में प्रश्न

आद्यन्तमंगलमजातसमानभाव
मार्यं तमीशमजरामरमात्मदेवं
पञ्चाननं प्रबलपञ्चविनोद्शीलं
सम्भावये मनसि शंकरमम्बिकेशम  

अर्थ:- जो आदि और अंत में (तथा मध्य में भी ) नित्य मंगलमय हैं जिनकी समानता अथवा तुलना कहीं भी नही है ,जो आत्मा के स्वरुप को प्रकाशित करनेवाले देवता (परमात्मा) हैं ,जिनके पांच मुख हैं जो खेल ही खेल में---अनायास जगत की रचना,पालन और संहार तथा अनुग्रह एवं तिरोभावरूप पांच प्रबल कर्म करते रहते हैं,उन सर्वश्रेष्ठ अजर-अमर इश्वर अम्बिकापति भगवान् शंकर का मन मन ही मन चिंतन करता हूँ

व्यास जी कहते हैं- जो धर्म का महान क्षेत्र है और जहाँ गंगा-यमुना का संगम हुआ है,उस परम पुण्यमय प्रयाग में,जो ब्रह्मलोक का मार्ग है,सत्यव्रतमें तत्पर रहने वाले महातेजस्वी महाभाग महात्मा मुनियोंने एक विशाल ज्ञानयज्ञ का आयोजन किया उस ज्ञानयज्ञ का समाचार सुनकर पौराणिकशिरोमणि व्यास शिष्य महामुनि सूत जी वहां मुनियों का दर्शन करने के लिए आए सूतजी को आते देख वे सब मुनि उस समय हर्ष से खिल उठे और अत्यंत प्रसन्नचित्त से उन्होंने उनका विधिवत स्वागत-सत्कार किया |तत्पश्चात उन प्रसन्न महात्माओं ने उनकी विधिवत स्तुति करके विनयपूर्वक हाथ जोड़ कर

उनसे इस प्रकार कहा -----सर्वज्ञ विद्वान रोमहर्षणजी ! आपका भाग्य बड़ा भारी है,इसी से आपने व्यासजी के मुख से अपनी प्रसन्नता के लिए ही सम्पूर्ण पुराणविद्या प्राप्त की |इसलिए आप आश्चर्यस्वरुप कथाओं के भण्डार हैं-ठीक उसी तरह,जैसे रत्नाकर समुद्र बड़े बड़े सारभूत रत्नों का आगार है|तीनों लोकों में भूत ,वर्तमान और भविष्य तथा और भी जो कोई वास्तु है,वह आपसे अज्ञात नहीं है |आप हमारे सौभाग्य से इस यज्ञ का दर्शन करने के लिए यहाँ पधार गए हैं और इसी व्याज से हमारा कुछ कल्याण करनेवाले हैं ;क्योंकि आपका आगमन निरर्थक नहीं हो सकता |
                    हमने पहले भी आपसे शुभाशुभ तत्त्व का पूरा पूरा वर्णन सुना है किन्तु उससे तृप्ति नहीं होती हमें उसे सुनाने की बारम्बार इच्छा होती है उत्तम बुद्धि वाले सूत जी इस समय हमें एक ही बात सुननी है यदि आपका अनुग्रह हो तो गोपनीय होने पर भी आप उस विषय का वर्णन करें घोर कलियुग आने पर मनुष्य पूर्ण कर्म से दूर रहेंगे दुराचार में फंस जायेंगे और सब के सब सत्यभाषण से मुंह फेर लेंगे दूसरों की निंदा में तत्पर होंगेपराये धन को हड़प लेने की इच्छा करेंगे उनका मन परायी स्त्रियों में आसक्त होगा तथा वे दूसरे प्राणियों की हिंसा किया करेंगे अपने शरीर को ही आत्मा समझेंगे |मूढ़ ,नास्तिक और पशु बुद्धि रखने वाले होंगेमाता पिता से द्वेष रखेंगे ब्राह्मण लोभ रुपी ग्राह के ग्रास बन जायेंगे वेद बेच कर जीविका चलाएंगे |धन का उपार्जन करने के लिए ही विद्या का अभ्यास करेंगे और मद से मोहित रहेंगे |
                 अपनी जाती के कर्म छोड़ देंगे प्रायः दूसरों को ठगेंगे ,तीनों काल की संध्योपासना से दूर रहेंगे और ब्रह्मज्ञान से शून्य होंगे समस्त क्षत्रिय भी स्वधर्म का त्याग करने वाले होंगेकुसंगी,पापी और व्यभिचारी होंगे |उनमे शौर्य का अभाव होगा वे कुत्सित चौर्य-कर्म से जीविका चलाएंगे,उनका चित्त काम का किंकर बना रहेगा |वैश्य संस्कार भ्रष्ट ,स्वधर्म त्यागी ,कुमार्गी ,धनोपार्जन-परायण तथा नाप-तौल में अपनी कुत्सित वृत्ति का परिचय देने वाले होंगे |इसी तरह शूद्र,ब्राह्मणों आचार में तत्पर होंगे ,उनकी आकृति उज्जवल होगी,अर्थात वे अपना कर्म धर्म छोड़ कर उज्जवल वेश भूषा से विभूषित हो व्यर्थ घूमेंगे |वे स्वभावतः ही अपने धर्म का त्याग करने वाले होंगे |उनके विचार धर्म के प्रतिकूल होंगे वे कुटिल और द्विज-निंदक होंगे |यदि धनी हुए तो कुकर्म में लग जायेंगे विद्वान् हुए तो वाद-विवाद करनेवाले होंगे |अपने को कुलीन मानकर चारों वर्णों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करेंगे ,समस्त वर्णों को अपने कर्मों से भ्रष्ट करेंगे|वे लोग अपनी अधिकार-सीमा से बाहर जा कर द्विजोचित सत्कर्मों का अनुष्ठान करनेवाले होंगे |

                    कलियुग की स्त्रियाँ प्रायः सदाचार से भ्रष्ट और पति का अपमान करने वाली होंगी |सास ससुर से द्रोह करेंगी |किसी से भय नहीं मानेंगी मलिन भोजन करेंगी कुत्सित हाव भाव में तत्पर होंगी उनका शील स्वभाव बहुत बुरा होगा आयर वे अपने पति की सेवा से सदा विमुख रहेंगी सूतजी ! इस तरह जिनकी बुद्धि नष्ट हो गयी है,जिन्होंने अपने धर्म का त्याग कर दिया है ऐसे लोगों का इहलोक और परलोक में उत्तम गति कैसे प्राप्त होगी ---इसी चिंता से हमारा मन सदा व्याकुल रहता है परोपकार के सामान दूसरा कोई धर्म नहीं है अतः जिस छोटे से उपाय से इन सबके पापों का तत्काल नाश हो जाय,उसे इस समय कृपा पूर्वक बताइएक्योंकि आप समस्त सिद्धांतों के ज्ञाता हैं |
व्यास जी कहते हैं उन भावितात्मा मुनियों की यह बात सुन कर सूत जी मन ही मन भगवान् शंकर का स्मरण करके

उनसे इस प्रकार बोले -------(शेष अगली पोस्ट में ..)
(अध्याय १)