Saturday, December 8, 2012

विद्येश्वर संहिता (अध्याय २)



शिवपुराण का परिचय

 

                                                सूत जी कहते हैं  साधू महात्माओं ! आपने बहुत अच्छी बात पूछी है आपका ये प्रश्न तीनों लोकों का हित करने वाला है | मैं गुरुदेव व्यास का स्मरण कर के आप लोगों के स्नेहवश इस विषय का वर्णन करूंगा | आप आदर पूर्वक सुनें | सबसे उत्तम जो शिवपुराण है वह वेदांत का सारसर्वस्व है तथा वक्ता और श्रोता का समस्त पाप राशियों से उद्धार करने वाला है ,इतना ही नहीं, वह परलोक में परमार्थ वस्तुको देने वाला है ,कलिकी कल्मष राशि का विनाश करने वाला है | उसमे भगवान् शिव के उत्तम यश का वर्णन है | ब्राह्मणों ! धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष- इन चारों पुरुषार्थों को देने वाला वह पुराण सदा ही अपने प्रभाव की दृष्टि से वृद्धि या विस्तार को प्राप्त हो रहा है | विप्रवरों उस सर्वोत्तम शिवपुराण के अध्ययन मात्र से वे कलियुग के पापसक्त जीव श्रेष्ठतम गति को प्राप्त हो जायेंगे | कलियुग के महान उत्पात तभी तक जगत में निर्भय होकर विचरेंगे,जबतक यहाँ शिवपुराण का उदय नहीं होगा | इसे वेद के तुल्य माना गया है |
                                                   इस वेद्कल्प पुराण का सबसे पहले भगवान् शिव ने ही प्रणयन किया था | विद्येश्वरसंहिता, रूद्रसंहिता, विनायकसंहिता, उमासंहिता, मातृसंहिता, एकादशरूद्रसंहिता, कैलाशसंहिता, शतरूद्रसंहिता, कोटिरूद्रसंहिता, सहस्तकोटिरूद्रसंहिता, वायवीयसंहिता तथा धर्मसंहिता---- इस प्रकार इस पुराण के बारह भेद या खंड हैं| ये बारह संहिताएँ अत्यंत पूर्णमयी मानी गयी हैं | ब्राह्मणों ! अब मैं उनके श्लोकों की संख्या बतारहा हूँ | आप लोग वह सब आदर पूर्वक सुनें विद्येश्वरसंहिता में दस हज़ार श्लोक हैं रूद्रसंहिता, विनायकसंहिता, उमासंहिता, मातृसंहिता-इनमे से प्रत्येक के आठ-आठ हज़ार श्लोक हैं |
                                                  ब्राह्मणों ! एकादश रूद्रसंहिता में तेरह हज़ार,कैलाशसंहिता में छह हजार ,शतरूद्रसंहिता में तीन हजार ,कोटि रूद्र संहिता में नौ हजार , सहस्त्रकोटिरूद्र संहिता में ग्यारह हजार,वायवीय संहिता में चार हजार ,तथा धर्म संहिता में बारह हजार श्लोक हैं | इस प्रकार मूल शिवपुराण की श्लोक संख्या एक लाख है ,परन्तु व्यास जी ने उसे चौबीस हजार श्लोकों में संक्षिप्त कर दिया है | पुरानों की क्रम संख्या के विचार से इस शिवपुराण का स्थान चौथा है | इसमें सात संहिताएँ हैं
                                                  पूर्वकाल में भगवन शिव ने श्लोक संख्या की दृष्टि से सौकरोड़ श्लोकों का एक ही पुराण ग्रन्थ ग्रथित किया था | सृष्टि के आदि में निर्मित हुआ वह पुराण साहित्य अत्यंत विस्तृत था | फिर द्वापर आदि युगों में द्वैपायन (व्यास) आदि महर्षियों ने जब पुराण का अठारह भागों में विभाजन कर दिया ,उस समय सम्पूर्ण पुराणों का संक्षिप्त स्वरुप केवल चार लाख श्लोकों का रह गया | उस समय उन्होंने शिवपुराण का चौबीस हजार श्लोकों में प्रतिपादन किया | यही इसके श्लोकों की संख्या है |
                                                  यह वेदतुल्य पुराण सात संहिताओं में बंटा हुआ है | इसकी पहली संहिता का नाम विद्येश्वर संहिता है , दूसरी रूद्रसंहिता समझनी चाहिए, तीसरी का नाम  शतरूद्रसंहिता,चौथी का कोटिरूद्र संहिता ,पांचवी का उमासंहिता ,छठी का कैलाशसंहिता,और सातवीं का नाम वायवीय संहिता है | इस प्रकार ये सात संहिताएँ मानी गयी हैं | इन सात संहिताओं से युक्त दिव्य शिवपुराण वेदके तुल्य प्रमाणिक तथा सबसे उत्कृष्ट गति प्रदान करनेवाला है | यह निर्मल शिवपुराण भगवान् शिव के द्वारा ही प्रतिपादित है | इस शैवशिरोमणि भगवान् व्यास ने संक्षेप से संकलित किया है | यह समस्त जीव-समुदाय के लिए उपकारक त्रिविध तापों का नाश करने वाला ,तुलना रहित एवं सत्पुरुषों को कल्याण प्रदान करने वाला है | इसमें वेदांत-विज्ञानमय प्रधान तथा निष्कपट (निष्काम) धर्म का प्रतिपादन किया गया है | यह पुराण इर्ष्यारहित अन्तःकरण वाले विद्वानों के लिए जानने की वस्तु है इसमें श्रेष्ठ मन्त्र समूहों का संकलन है तथा धर्म अर्थ और काम इस त्रिवर्ग की प्राप्ति के साधन का भी वर्णन है | यह उत्तम शिवपुराण समस्त पुराणों में श्रेष्ठ है| वेद-वेदान्त में वेद्यरूप से विलसित परम वस्तु----परमात्मा का इसमें गान किया गया है जो बड़े आदर से इसे पढता है और सुनता है वह भगवान् शिव का प्रिय होकर परम गति को प्राप्त कर लेता है |
(शेष अगले भाग में ....)
(अध्याय २)  

विद्येश्वरसंहिता-अध्याय १







प्रयाग में सूतजी से मुनियों का तुरंत पापनाश करनेवाले साधन के विषय में प्रश्न

आद्यन्तमंगलमजातसमानभाव
मार्यं तमीशमजरामरमात्मदेवं
पञ्चाननं प्रबलपञ्चविनोद्शीलं
सम्भावये मनसि शंकरमम्बिकेशम  

अर्थ:- जो आदि और अंत में (तथा मध्य में भी ) नित्य मंगलमय हैं जिनकी समानता अथवा तुलना कहीं भी नही है ,जो आत्मा के स्वरुप को प्रकाशित करनेवाले देवता (परमात्मा) हैं ,जिनके पांच मुख हैं जो खेल ही खेल में---अनायास जगत की रचना,पालन और संहार तथा अनुग्रह एवं तिरोभावरूप पांच प्रबल कर्म करते रहते हैं,उन सर्वश्रेष्ठ अजर-अमर इश्वर अम्बिकापति भगवान् शंकर का मन मन ही मन चिंतन करता हूँ

व्यास जी कहते हैं- जो धर्म का महान क्षेत्र है और जहाँ गंगा-यमुना का संगम हुआ है,उस परम पुण्यमय प्रयाग में,जो ब्रह्मलोक का मार्ग है,सत्यव्रतमें तत्पर रहने वाले महातेजस्वी महाभाग महात्मा मुनियोंने एक विशाल ज्ञानयज्ञ का आयोजन किया उस ज्ञानयज्ञ का समाचार सुनकर पौराणिकशिरोमणि व्यास शिष्य महामुनि सूत जी वहां मुनियों का दर्शन करने के लिए आए सूतजी को आते देख वे सब मुनि उस समय हर्ष से खिल उठे और अत्यंत प्रसन्नचित्त से उन्होंने उनका विधिवत स्वागत-सत्कार किया |तत्पश्चात उन प्रसन्न महात्माओं ने उनकी विधिवत स्तुति करके विनयपूर्वक हाथ जोड़ कर

उनसे इस प्रकार कहा -----सर्वज्ञ विद्वान रोमहर्षणजी ! आपका भाग्य बड़ा भारी है,इसी से आपने व्यासजी के मुख से अपनी प्रसन्नता के लिए ही सम्पूर्ण पुराणविद्या प्राप्त की |इसलिए आप आश्चर्यस्वरुप कथाओं के भण्डार हैं-ठीक उसी तरह,जैसे रत्नाकर समुद्र बड़े बड़े सारभूत रत्नों का आगार है|तीनों लोकों में भूत ,वर्तमान और भविष्य तथा और भी जो कोई वास्तु है,वह आपसे अज्ञात नहीं है |आप हमारे सौभाग्य से इस यज्ञ का दर्शन करने के लिए यहाँ पधार गए हैं और इसी व्याज से हमारा कुछ कल्याण करनेवाले हैं ;क्योंकि आपका आगमन निरर्थक नहीं हो सकता |
                    हमने पहले भी आपसे शुभाशुभ तत्त्व का पूरा पूरा वर्णन सुना है किन्तु उससे तृप्ति नहीं होती हमें उसे सुनाने की बारम्बार इच्छा होती है उत्तम बुद्धि वाले सूत जी इस समय हमें एक ही बात सुननी है यदि आपका अनुग्रह हो तो गोपनीय होने पर भी आप उस विषय का वर्णन करें घोर कलियुग आने पर मनुष्य पूर्ण कर्म से दूर रहेंगे दुराचार में फंस जायेंगे और सब के सब सत्यभाषण से मुंह फेर लेंगे दूसरों की निंदा में तत्पर होंगेपराये धन को हड़प लेने की इच्छा करेंगे उनका मन परायी स्त्रियों में आसक्त होगा तथा वे दूसरे प्राणियों की हिंसा किया करेंगे अपने शरीर को ही आत्मा समझेंगे |मूढ़ ,नास्तिक और पशु बुद्धि रखने वाले होंगेमाता पिता से द्वेष रखेंगे ब्राह्मण लोभ रुपी ग्राह के ग्रास बन जायेंगे वेद बेच कर जीविका चलाएंगे |धन का उपार्जन करने के लिए ही विद्या का अभ्यास करेंगे और मद से मोहित रहेंगे |
                 अपनी जाती के कर्म छोड़ देंगे प्रायः दूसरों को ठगेंगे ,तीनों काल की संध्योपासना से दूर रहेंगे और ब्रह्मज्ञान से शून्य होंगे समस्त क्षत्रिय भी स्वधर्म का त्याग करने वाले होंगेकुसंगी,पापी और व्यभिचारी होंगे |उनमे शौर्य का अभाव होगा वे कुत्सित चौर्य-कर्म से जीविका चलाएंगे,उनका चित्त काम का किंकर बना रहेगा |वैश्य संस्कार भ्रष्ट ,स्वधर्म त्यागी ,कुमार्गी ,धनोपार्जन-परायण तथा नाप-तौल में अपनी कुत्सित वृत्ति का परिचय देने वाले होंगे |इसी तरह शूद्र,ब्राह्मणों आचार में तत्पर होंगे ,उनकी आकृति उज्जवल होगी,अर्थात वे अपना कर्म धर्म छोड़ कर उज्जवल वेश भूषा से विभूषित हो व्यर्थ घूमेंगे |वे स्वभावतः ही अपने धर्म का त्याग करने वाले होंगे |उनके विचार धर्म के प्रतिकूल होंगे वे कुटिल और द्विज-निंदक होंगे |यदि धनी हुए तो कुकर्म में लग जायेंगे विद्वान् हुए तो वाद-विवाद करनेवाले होंगे |अपने को कुलीन मानकर चारों वर्णों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करेंगे ,समस्त वर्णों को अपने कर्मों से भ्रष्ट करेंगे|वे लोग अपनी अधिकार-सीमा से बाहर जा कर द्विजोचित सत्कर्मों का अनुष्ठान करनेवाले होंगे |

                    कलियुग की स्त्रियाँ प्रायः सदाचार से भ्रष्ट और पति का अपमान करने वाली होंगी |सास ससुर से द्रोह करेंगी |किसी से भय नहीं मानेंगी मलिन भोजन करेंगी कुत्सित हाव भाव में तत्पर होंगी उनका शील स्वभाव बहुत बुरा होगा आयर वे अपने पति की सेवा से सदा विमुख रहेंगी सूतजी ! इस तरह जिनकी बुद्धि नष्ट हो गयी है,जिन्होंने अपने धर्म का त्याग कर दिया है ऐसे लोगों का इहलोक और परलोक में उत्तम गति कैसे प्राप्त होगी ---इसी चिंता से हमारा मन सदा व्याकुल रहता है परोपकार के सामान दूसरा कोई धर्म नहीं है अतः जिस छोटे से उपाय से इन सबके पापों का तत्काल नाश हो जाय,उसे इस समय कृपा पूर्वक बताइएक्योंकि आप समस्त सिद्धांतों के ज्ञाता हैं |
व्यास जी कहते हैं उन भावितात्मा मुनियों की यह बात सुन कर सूत जी मन ही मन भगवान् शंकर का स्मरण करके

उनसे इस प्रकार बोले -------(शेष अगली पोस्ट में ..)
(अध्याय १)